Monday, October 25, 2010

कफ़न की ख़ामोशी को शमसान क्या जाने



कफ़न की ख़ामोशी को शमसान क्या जाने,
महकते हुए चमन को वीरान क्या जाने,
क्यों बरसती है ये बदनसीब आखें,
इन आंसुओ की कीमत रेगिस्तान क्या जाने.

तुझे खोना भी मुश्कील है, तुझे पाना भी मुश्कील है !

तुझे खोना भी मुश्कील है, तुझे पाना भी मुश्कील है. जरा सी बात पर आंखें भीगो के बैठ जाते हो, तुझे अब अपने दील का हाल बताना भी मुश्किल है...